वर्क-लाइफ बैलेंस बनाम डॉक्टरों की हकीकत

आजकल वर्क-लाइफ बैलेंस पर बड़ी चर्चा होती है, खासकर कॉरपोरेट सेक्टर में, जहां लोग 70-80 घंटे के वर्कवीक पर बहस कर रहे हैं। लेकिन क्या किसी ने कभी डॉक्टरों, खासकर जूनियर रेजिडेंट्स, के बारे में सोचा है? जो न सिर्फ 100-120 घंटे हफ़्ते में काम करते हैं, बल्कि बहुत ही खराब परिस्थितियों में रहते हैं।

जूनियर डॉक्टरों की जिंदगी की सच्चाई
1. अमानवीय वर्किंग ऑवर्स
एक पहले साल का रेजिडेंट डॉक्टर आमतौर पर 18-24 घंटे की शिफ्ट करता है, बिना किसी निश्चित ब्रेक के।
हफ्ते में 7 दिन, बिना किसी छुट्टी के—कई बार महीनों तक बिना आराम किए।
ओपीडी, इमरजेंसी, ऑपरेशन थिएटर—हर जगह एक ही डॉक्टर को दौड़ना पड़ता है।
2. बदतर रहने की स्थिति
छोटे, गंदे कमरे, जहां 2-3 लोग एक साथ रहते हैं।
10-15 रेजिडेंट्स के लिए एक टॉयलेट, जो अक्सर खराब हालत में होता है।
कभी-कभी डॉक्टरों को बेंच, बेड, या जमीन पर ही सोना पड़ता है, क्योंकि रेस्ट का कोई समय नहीं होता।
3. इन्फेक्शन और बर्नआउट का खतरा
आईसीयू और इमरजेंसी वार्ड में लगातार काम करने से इंफेक्शन का खतरा।
खून और शरीर के अन्य फ्लूइड्स से सने एप्रन और कपड़े, जिन्हें बार-बार बदलने का समय नहीं मिलता।
मेंटल स्ट्रेस और डिप्रेशन—हर समय तनाव में काम करना।
4. मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना
सीनियर डॉक्टरों की डांट—अगर थोड़ा भी काम छूट जाए तो डांट-फटकार आम बात है।
मरीजों के रिश्तेदारों की मारपीट—अगर इलाज में देर हो जाए तो डॉक्टरों को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है।
कोई सुरक्षा नहीं—अस्पतालों में डॉक्टरों के लिए कोई उचित सुरक्षा व्यवस्था नहीं होती।
5. कोई एक्स्ट्रा सैलरी या पहचान नहीं
₹60,000-₹80,000 प्रति माह सैलरी—जो कि कॉरपोरेट सेक्टर की तुलना में बहुत कम है।
ओवरटाइम का कोई भुगतान नहीं, भले ही डॉक्टर सामान्य वर्कवीक से 2-3 गुना अधिक काम कर रहे हों।
बीमारी की छुट्टी भी नहीं—अगर डॉक्टर खुद बीमार हो जाए, तब भी उसे काम पर आना पड़ता है।
डॉक्टरों की यह स्थिति क्यों अनदेखी की जाती है?
लोग मानते हैं कि डॉक्टरी सेवा का कार्य है, इसलिए त्याग करना ही होगा।
कॉरपोरेट सेक्टर में तो लोग यूनियन बनाकर हड़ताल करते हैं, लेकिन डॉक्टरों को बस “बलिदान देने” की नसीहत दी जाती है।
लोग सोचते हैं कि डॉक्टर बहुत पैसा कमाते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि सफलता और आर्थिक स्थिरता उन्हें 10-15 साल की मेहनत के बाद मिलती है।
निष्कर्ष
जब कॉरपोरेट सेक्टर के लोग 80 घंटे वर्कवीक और आरामदायक ऑफिस लाइफ पर बहस करते हैं, तब जूनियर डॉक्टर 120 घंटे से ज्यादा काम करते हैं, बिना किसी शिकायत के।

तो अगली बार जब कोई “वर्क-लाइफ बैलेंस” की बात करे, तो डॉक्टरों के संघर्ष को याद रखें।
डॉक्टरों को हमारा सलाम! 🙏

 

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