5000 साल पुराना है सेंगोल का इतिहास, जानिए ‘राजदंड’ की कहानी जो संसद में किया गया स्थापित

पीएम नरेंद्र मोदी को तमिलनाडु के अधिनम महंत ने सौंपा सेंगोल कल नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में होंगे शामिल - Adhinam Mahant
पीएम नरेंद्र मोदी को तमिलनाडु के अधिनम महंत ने सौंपा सेंगोल कल नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में होंगे शामिल - Adhinam Mahant

पीएम नरेंद्र मोदी ने लोकतंत्र के नए मंदिर में विधि-विधान के साथ सेंगोल की स्थापना की. सेंगोल का इतिहास आधुनिक तौर पर भारत की आजादी से जुड़ा हुआ है तो .वहीं इसकी प्राचीनता की कड़ियां चोल राजवंश से भी जुड़ती हैं. इसे राजाओं के राजदंड के तौर पर भी जाना जाता है.शरीर पर केसरिया वस्त्र, माथे पर त्रिपुंड चंदन और गले में शैव परंपरा से जुड़ी मालाएं. शनिवार को पीएम आवास में जब इस वेशभूषा और सांस्कृतिक परंपरा की थात…समेटे कुछ लोगों का आगमन हुआ तो समय का वह दौर, उस पल का उदाहरण बन गया जब सत्ता का संगम संस्कृति के साथ होता है. यह विशेष समय था तमिलनाडु के आधीनम महंतों से मुलाकात का, जिसके लिए पीएम मोदी ने कहा कि.कि आज मेरे निवास स्थान पर आप सभी के चरण पड़े हैं, ये मेरे लिए सौभाग्य का विषय है. मुझे इस बात की भी बहुत खुशी है कि कल नए संसद भवन के लोकार्पण के समय … के समय आप सभी वहां आकर आशीर्वाद देने वाले हैं. इसके बाद रविवार सुबह विधि-विधान के साथ सेंगोल को संसद के नए भवन में स्थापित किया गया.

हमारी प्राचीन पद्धतियों में दर्ज रहा है सेंगोल
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में तमिलनाडु के सदियों पुराने मठ के आधीनम महंतों का आगमन उस परंपरा को फिर से सत्ता का खास अंग बनाने के लिए हुआ है, जिसका लेखा-जोखा हमारी प्राचीन पद्धतियों में दर्ज रहा है और जो इस देश की विरासत रही है. यहां सेंगोल की बात हो रही…जिसे प्राचीन काल से राजदंड के तौर पर जाना जाता रहा है. यह राजदंड सिर्फ सत्ता का प्रतीक नहीं, बल्कि राजा के सामने हमेशा न्यायशील बने रहने औरऔर प्रजा के लिए राज्य के प्रति समर्पित रहने के वचन का स्थिर प्रतीक भी रहा है.

आजादी से जुड़ा है सेंगोल का आधुनिक इतिहास
जिस सेंगोल की स्थापना नई संसद में की जा रही है, उसका आधुनिक इतिहास भारत की आजादी के साथ जुड़ा हुआ सामने आया … जब तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर सेंगोल सौंपा गया. वहीं प्राचीन इतिहास पर नजर डालें तो सेंगोल के सूत्र चोल राज शासन से जुड़ते हैं, जहां सत्ता का उत्तराधिकार सौंपते हुए पूर्व राजा, नए बने राजा को सेंगोल सौंपता था. यह सेंगोल राज्य का उत्तराधिकार सौंपे जाने का जीता-जागता प्रमाण होता था और राज्य को न्यायोचित तरीके से चलाने का निर्देश भी.

5000 साल पुराने महाभारत में भी मिलता है इतिहास
रामायण-महाभारत के कथा प्रसंगों में भी ऐसे उत्तराधिकार सौंपे जाने के ऐसे जिक्र मिलते रहे हैं. इन कथाओं में राजतिलक होना, राजमुकुट पहनाना सत्ता सौंपने के प्रतीकों के तौर पर इस्तेमाल होता दिखता है, लेकिन इसी के साथ राजा को धातु की एक छड़ी भी सौंपी जाती थीजिसे राजदंड कहा जाता था. इसका जिक्र महाभारत में युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के दौरान भी मिलता है. जहां शांतिपर्व में इसके जिक्र की बात करते हुए कहा जाता ..

ऐसी थी राजदंड की अवधारणा
राजतिलक और राजदंड की वैदिक रीतियों में एक प्राचीन पद्धति का जिक्र होता है. इसके अनुसार राज्याभिषेक के समय एक पद्धति है. राजा जब गद्दी पर बैठता है तो तीन बार ‘अदण्ड्यो: अस्मि’ कहता है, तब राजपुरोहित उसे पलाश दंड से मारता हुआ कहता है कि ‘धर्मदण्ड्यो: असि’. राजा के कहने का… राजा के कहने का तात्पर्य होता है, उसे दंडित नहीं किया जा सकता है. ऐसा वह अपने हाथ में एक दंड लेकर कहता है. यानि यह दंड राजा को सजा देने का अधिकार देता… लेकिन इसके ठीक बाद पुरोहित जब यह कहता है कि, धर्मदंडयो: असि, यानि राजा को भी धर्म दंडित कर सकता है.ऐसा कहते हुए वह राजा को राजदंड थमाता है. यानि कि राजदंड, राजा की निरंकुशता पर अंकुश लगाने का साधन भी रहा है. महाभारत में इसी आधार पर महामुनि व्यास, युधिष्ठिर को अग्रपूजा के जरिए अपने ऊपर एक र… अपने ऊपर एक राजा को चुनने के लिए कहते हैं.

सेम्मई शब्द से बना है सेंगोल
सेंगोल को और खंगालें तो कई अलग-अलग रिपोर्ट में  इसकी उत्पत्ति तमिल तमिल शब्द ‘सेम्मई’ से बताई गई है. सेम्मई का अर्थ है ‘नीतिपरायणता’, यानि सेंगोल को धारण करने वाले पर यह विश्वास किया जाता है कि वह नीतियों का पालन करेगा. यही राजदंड कहलाता था, जो राजा को न्याय सम्मत दंड देने का अधिकारी बनाता था. ऐतिहासिक परंपरा के अनुसार, राज्याभिषेक के समय, राजा के गुरु के नए शासक को औपचारिक तोर पर राजदंड उन्हें सौंपा करते थे.

1947 में कैसे सामने आया सेंगोल
अभी के सेंगोल की बात करते हुए तथ्यों के तार चोल साम्राज्य के साथ अधिक जुड़े नजर आते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि, सेंगोल की 1947 से जुड़ा जो विस्तृत इतिहास सामने आया है, उसके धागे तमिल संस्कृति की प्राचीनता से जुड़े हैं. अब यह सार्वजनिक कहानी हो चुकी है कि, जब सत्ता केहस्तांतरण का समय आया, तो वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने पूर्व पीएम नेहरू से पूछा कि भारतीय परंपराओं के अनुसार देश को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक क्या होना चाहिए. तब पीएम होने वाले नेहरू ने भारत के प्रथम गवर्नर सी राजगोपालाचारी से बात की. उन्होंने ही एक गहन शोध के बाद राय दी कि भारतीय परंपराओं के अनुसार, ‘सेंगोल’ को ऐतिहासिक हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में चिह्नित किया जा सकता है. इसके लिए उन्होंने तमिल संस्कृति और चोल राज परंपरा का ही हवाला दिया.

सी राजगोपालाचारी ने दी थी राय
इसके आधार पर, नेहरू ने अधीनम से सेंगोल को स्वीकार किया, जिसे विशेष रूप से तमिलनाडु से लाया गया था. एतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि, सी राजगोपालाचारी ने तमिलनाडु के तंजौर के धार्मिक मठ – थिरुववदुथुराई अधीनम से संपर्क किया था. अधीनम के नेता ने उनके कहने के बाद ‘सेंगोल’  की तैयारी शुरू कर दी थी. तंजौर ही इतिहास का तंजावुर है जहां एक समय चोल राजवंश की महान राजधानी थी.

कौन हैं वे लोग, जिनकी वजह से सामने आ पाया सेंगोल
सेंगोल की पूरी कहानी और इतिहास से लेकर वर्तमान तक सारा ब्यौरा सामने है. लेकिन, अब उन लोगों के बारे मे… भी बात करना जरूरी हो जाता है, जिनके जरिए इतिहास की यह धरोहर अंधेरे से निकलकर अपने स्वर्णिम वैभव के साथ सामने आ सकी है. इस कड़ी में सबसे पहला नाम आता ह… प्रख्यात नृत्यांगना, डॉ. पद्मा सुब्रह्मण्यम का. प्रधानमंत्री कार्यालय को सेंगोल के बारे में करीब 2 साल पहले पद्मा सुब्रमण्यम की एक चिट्ठी के जरिए पता…चला था. इसके बाद सेंगोल को ढूंढने का काम शुरू हुआ.

दूसरी कड़ी यानी IGNCA की खोजबीन
चिट्ठी मिलने के बाद, सरकार ने सेंगोल की खोजबीन शुरू की. इसके लिए संस्कृति मंत्रालय ने एक टीम बनाई. इसमें इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स (IGNCA) के एक्सपर्ट भी मदद कर रहे थे. IGNCA के सचिव प्रो सच्चिदानंद जोशी ने एक मीडिया बातचीत में कहा हिंसा के कारण, और देश के विभाजन कि वजह से कार्यक्रम को बहुत जल्दबाजी में आयोजित किया गया. यह कोई कानूनी या औपचारिक मामला नहीं था इसलिए इसका कोई इसलिए इसका कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं रखा गया. इसका नतीजा ये हुआ कि पवित्र सेंगोल और यह समारोह भारत की यादों से गायब हो गया.” शोधकर्ताओं ने नेशनल आर्काइव ऑफ इंडिया के रिकॉर्ड्स, आजादी के वक्त के अखबारों को छान मारा. इससे जो सामने आया, उसके मुताबिक सेंगोल में सोने की परत चढ़ाई..गई थी. तब इसमें 15 हजार रुपये का खर्च आया था. इसे चेन्नई के हीरा व्यापारी वुम्मिदी बंगारू चेट्टी एंड सन्स ने बनाया था.

तीसरी कड़ी में मिल गया बनाने वालों का पता
वुम्मिदी बंगारू चेट्टी परिवार ने इसकी पुष्टि की थी कि उन्होंने सेंगोल को बनाया. उनके घर में भी कार्यक्रम केरान की तस्वीर लगी है. इसे बनाने में 96 साल के वुम्मिदी एथिराजुलु (Vummidi Ethirajulu) और 88 साल के वुम्मिदी सुधाकर (Vummidi Sudhakar) भी शामिल थे. वुम्मिदी एथिराजुलु ने उस वक्त को याद करते हुए बताया कि अधीनम किसी की सिफारिश के लिए हमारे पास सेंगोल को बनाने का आये थे. वे एक चित्र लेकर आये थे, इसी की तरह इसे बनाना था. यह महत्वपूर्ण स्थान पर जाना था. ऐसे में अच्छी क्वालिटी जरूरी थी. यह चांदी का बना था,  इस पर सोने की परत चढ़ाई गई थी. स्वतंत्रता हम सबके लिए गौरवशाली क्षण था. लेकिन जब हमें ये अहम जिम्मेदारी सौंपी गई, तो इसका महत्व तो इसका महत्व हमारे लिए और बढ़ गया था.

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